Sunday, February 17, 2019

हाथी को कैसे बचा सकती है टेक्नॉलॉजी

असाधारण बीमारियों के नए उपचार, प्रयोगों के लिए प्रयोगशालों में जीव-जन्तुओं की उपयोगिता समाप्त करने, इंसान का पर्याय बनने और विलुप्त हो रही प्रजातियों को पुनर्जीवन देने में भी 'चिप' पर इकट्ठा की गई जानकारियां अत्यन्त सहायक हो रही हैं.

क्योटो विश्वविद्यालय के एक माइक्रोइंजीनियर केन इचिरो कामेई जब अपने दोस्तों के साथ वक्त बिताने बाहर जाते हैं तो आमतौर पर वह अपने साथ अपनी एक चिप भी लाते हैं जिस पर किसी जीव की पूरी ज़िन्दगी अंकित होती है.

इस दौरान जैसे ही कामकाज के बारे में बातचीत होती है, कामेई प्रयोगशाला की एक स्लाइड की तरह दिखने वाली अपनी उस चिप को बाहर निकालते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर सिलिकॉन की एक परत जैसी चीज़ पर सूक्ष्म गड्ढे और चैनल यानि प्रणालिकाएं नजर आती हैं.

इन्हें दिखाते हुए वे कहते हैं, "मैं इंसानों और जानवरों का सृजन करने के लिए इन चिपों की रचना कर रहा हूं."

दोस्तों से फौरन वाहवाही मिलती है और वाहवाही से प्रसन्न कामेई कहते हैं, "ऐसा लगता है कि मैं एक जादूगर हूं और मेरे दोस्त मुझसे जादू दिखाने की गुजारिश कर रहे हैं."

कामेई जैव तकनीक के एक ऐसे नए क्षेत्र की अगुवाई कर रहे हैं जिसका उद्देश्य अंगों, प्रणालियों और सम्पूर्ण शरीर की रचना की हू-ब-हू नकल उस चिप पर दोहराना है.

प्रयोगशाला में होने वाले परम्परागत जैव रासायनिक प्रयोग जहां एक ओर अचल और एकाकी होते हैं वहीं कामेई द्वारा प्रयुक्त चिपों में चैनलों, वॉल्बों और पम्पों की आपस में जुड़ी हुई प्रणाली होती है जो काफी जटिल परस्पर क्रियाओं को सम्भव करती है, वो भी इस हद तक कि ये मिलकर एक जीती-जागती प्रणाली की नकल कर लेते हैं.

चिकित्सा शोध में क्रान्तिकारी बदलाव लाने की इन चिपों की संभावना को देखते हुए विश्व आर्थिक फोरम में वर्ष 2016 में 'ऑर्गन ऑन चिप्स' को उस वर्ष की 10 श्रेष्ठ उभरती हुई प्रोद्योगिकियों में शामिल किया था.

लेकिन जहां वो विशेष चिप किसी एक खास ऊतक या अंग की नकल कर सकते हैं, कामेई और उनके सहयोगी पूरे जीव की नकल बनाने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं.

उनके अनुसार परियोजना काफी महत्वाकांक्षी है.

कामेई अपनी प्रयोगशाला में मुख्य रूप से एक लेज़र कटर और एक थ्री डी प्रिंटर की मदद से अपने सूक्ष्म चिप (माइक्रो फ्ल्यूडिक) चिप बनाते हैं.

इन चिपों को चलाने के लिए वह सूक्ष्म प्रणालियों से जुड़े छह प्रकोष्ठों में विभिन्न प्रकार के कोशिका ऊतकों को जोड़ते हैं और फिर प्रणालिका में संचार लाने के लिए चिप के न्यूमेटिक माइक्रो पम्प को एक कंट्रोलर से जोड़ देते हैं.

इस तरह उन्हें और उनकी टीम के अन्य लोगों को नई दवाओं के प्रभाव और उनके दुष्प्रभाव की जांच करने की क्षमता के साथ-साथ किसी भी व्यक्ति की कोशिकाओं के आधार पर विशेष तौर पर उस व्यक्ति के लिए दवा तैयार करने तथा रोग के कारणों को अच्छे ढंग से समझने की क्षमता प्राप्त होती है.

जैसे कि एक प्रयोग में कामेई और उनके सहयोगियों ने चिप पर हृदय की स्वस्थ कोशिकाओं के साथ-साथ यकृत की कैंसर युक्त कोशिकाओं को डाल दिया.

उसके बाद हृदय पर जहरीला असर डालने वाली कैंसर रोधी दवा डॉक्सोरियूबिसिन भी मिला दी गई. लेकिन इस दवा के स्पष्ट हानिकारक प्रभावों के बारे में जानकारी नहीं थी.

शोधकर्ताओं ने पाया कि इस दवा से सीधे तौर हृदय को नुकसान नहीं पहुंचता; बल्कि यकृत द्वारा चयापचय की क्रिया के दौरान उत्पन्न पदार्थ से नुकसान पहुंचता है.

इस तरह के प्रयोगों के लिए विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है.

इसे संभव किया 2012 में शरीर विज्ञान या चिकित्सा के क्षेत्र में इंड्यूस्ड-प्ल्यूरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं (आईपीएस) के सृजन में अग्रणी योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले क्योटो विश्वविद्यालय के स्टेम सेल शोधकर्ता शिन्या यामानाका ने.

इस बारे में कामेई बताते हैं, "आईपीएस कोशिकाएं शरीर के बाहर भी कई गुना बढ़ सकती हैं जबकि अन्य तरह की स्टेम कोशिकाएं ऐसा नहीं कर सकतीं."

"पहले प्रयोग में लाई जाने वाली कोशिकाएं एक ही व्यक्ति से ली जाती थीं जो कि आनुवांशिक बीमारियों या एक व्यक्ति विशेष से संबंधित अध्ययन के लिए बहुत कारगर नहीं होती थी."

जैसा कि इनके नाम से ही पता लगता है कि एक जैसी आईपीएस कोशिकाएं शरीर के किसी भी अन्य प्रकार की कोशिकाओं से ली जा सकती हैं.

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