Tuesday, January 22, 2019

बुरी तरह जल जाने के बावजूद एक कराह भी नहीं निकली थी नेताजी के मुंह से

दूसरे युद्ध में जापान की हार के बाद सुदूर पूर्व में उसकी सेनाएं बिखर चुकी थीं. उनका मनोबल बुरी तरह से गिरा हुआ था.

सुभाषचंद्र बोस भी सिंगापुर से बैंकाक होते हुए सैगोन पहुंचे थे.

वहाँ से आगे जाने के लिए एक भी जापानी विमान उपलब्ध नहीं था. बहुत कोशिशों के बाद उन्हें एक जापानी बमवर्षक विमान में जगह मिली.

हवाई अड्डे पर छोड़ने आए अपने साथियों से उन्होंने हाथ मिला कर जय हिंद कहा और तेज़ी से कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर विमान में अन्तर्धान हो गए.

उनके एडीसी कर्नल हबीबुर रहमान ने भी सब को जयहिंद कहा और उनके पीछे पीछे विमान पर चढ़ गए.

नेताजी की मौत पर 'लेड टू रेस्ट' किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आशिस रे बताते हैं, "उस विमान में क्रू समेत 14 लोग सफ़र कर रहे थे. पायलट के ठीक पीछे नेताजी बैठे हुए थे. उनके सामने पैट्रोल के बड़े बड़े 'जेरी केन' रखे हुए थे. नेताजी के पीछे हबीब बैठे हुए थे."

"विमान में घुसते ही जापानियों ने नेताजी को सह पायलट की सीट देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने उसे विनम्रतापूर्वक मना कर दिया था. वजह ये थी कि नेताजी जैसे बड़े कदकाठी वाले शख़्स के लिए वो सीट काफ़ी छोटी थी."

"पायलट और लेफ़्टिनेंट जनरल शीदे के अलावा सभी लोग विमान की ज़मीन पर बैठे हुए थे. नेताजी को एक छोटा सा कुशन दिया गया था ताकि उनकी पीठ को अराम मिल सके. इन सभी लोगों के पास कोई सीट बेल्ट नहीं थी.

उस बमवर्षक विमान के भीतर बहुत ठंड थी. उस ज़माने में युद्धक विमानों में 'एयर कंडीशनिंग' नहीं होती थी और हर 1000 मीटर ऊपर जाने पर विमान का दर का तापमान छह डिग्री गिर जाता था. इसलिए 4000 फ़ीट की ऊंचाई पर तापमान धरती के तापमान से कम से कम 24 डिग्री कम हो गया था.

उड़ान के दौरान ही उन्होंने रहमान से अपनी ऊनी जैकेट मांग कर पहन ली. दोपहर 2 बज कर 35 मिनट पर बमवर्षक ने ताईपे से आगे के लिए उड़ान भरी.

शाहनवाज़ कमीशन को दिए अपने वक्तव्य में कर्नल हबीबुर्रहमान ने बताया, "विमान बहुत ऊपर नहीं गया था और अभी एयरफ़ील्ड सीमा के अंदर ही था कि मुझे विमान के सामने के हिस्से से धमाके की आवाज़ सुनाई दी. बाद में मुझे पता चला कि विमान का एक प्रोपेलर टूट कर नीचे गिर गिया था. जैसे ही विमान नीचे गिरा उसके अगले और पिछले हिस्से में आग लग गई."

कर्नल हबीबुर रहमान ने आगे कहा, "विमान गिरते ही नेताजी ने मेरी तरफ़ देखा. मैंने उनसे कहा, 'नेताजी आगे से निकलिए, पीछे से रास्ता नहीं है.' आगे के रास्ते में भी आग लगी हुई थी. नेताजी आग से हो कर निकले. लेकिन उनका कोट सामने रखे जेरी कैन के पेट्रोल से सराबोर हो चुका था."

"मैं जब बाहर आया तो मैंने देखा कि नेताजी मुझसे 10 मीटर की दूरी पर खड़े थे और उनकी निगाह पश्चिम की तरफ़ थी. उनके कपड़ों में आग लगी हुई थी. मैं उनकी तरफ़ दौड़ा और मैंने बहुत मुश्किल से उनकी 'बुशर्ट बेल्ट' निकाली. फिर मैंने उन्हें ज़मीन पर लिटा दिया. मैंने देखा कि उनके सिर के बाएं हिस्से पर 4 इंच लंबा गहरा घाव था."

"मैंने रुमाल लगा कर उसमें से निकल रहे ख़ून को रोकने की कोशिश की. तभी नेताजी ने मुझसे पूछा, आपको ज़्यादा तो नहीं लगी ? मैंने कहा 'मैं ठीक हूँ.'

"उन्होंने कहा 'मैं शायद बच नहीं पाउंगा.' मैंने कहा, 'अल्लाह आपको बचा लेगा.' बोस बोले, 'नहीं मैं ऐसा नहीं समझता. जब आप मुल्क वापस जाएं तो लोगों को बताना कि मैंने आख़िरी दम तक मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी. वो जंगे-आज़ादी को जारी रखें. हिंदुस्तान ज़रूर आज़ाद होगा."

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